गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

sanskar


दो बेटों की मां हूं । सौभाग्यषाली भी हूं । दोनों बेटे एक ही षहर में और वह भी पास पास,एक ही सेैक्टर में रह रहे हैं । मैं दोनों परिवारों के बीच सेतू । मन करता है तो बड़े के यहां चली जाती हूं ,फिर छोटे के पास आ जाती हूं । बहूएं दोनो नौकरी करती हैं । बच्चे घर से बाहर हैं , बड़े बेटे के तो नौकरी कर रहे हैं , छोटे के अभी पढ रहे हैं । जिस घर में चहल पहल होती है वहीं मेरा मन लगता है । दोनो परिवार इक्कठे रह रहे होते तो कितना अचछा लगता सोचती हूं तो मन गदगद हो जाता है । जाने जमाना ही बदल गया है या मुझ से कोई संस्कार देने में भूल हुई है ।




4 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक पोस्ट समय के दवाब बदलाव से सब टूट रहा है नया इतिहास लिख रहा है यह बदलाव .

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  2. समय का परिवर्तन

    संजय भास्कर
    फतेहाबाद हरियाणा
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  3. वातावरण प्रधान अच्छी व्यंग्य विनोद पूर्ण रचना .बधाई .

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