शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

Pagal

मैं पागल न होते हुए भी वहां चला जाता हूं । इस रविवार को गया तो रवि कोदेख कर दंग रह गया । क्या बात है भाई ? वह एक किताब पढ रहा था । क्या करूं सर धर में परेशान कर के रखा है । पिता चाहते हैं खानदानी बिजनैस संभलूं । मां चाहती है नाना जी जैा नामी ग्रामी वकील बनूं । बड़ी बहन पुलिस अफसर देखना चाहती है और दादा जी फौजी अफसर बनाना चाहते है। मैं पागल हो गया हूं । कोई नहीं जानना चाहता कि मैं क्या चाहता हूं , इसलिए यहां आ गया हूं ।

1 टिप्पणी:

  1. नींद हमारी ख़्वाब तुम्हारे जैसे हालात हैं .एक अनार सौ बीमार हर कोई आने खाब दूसरों की आँख से देखने को क्यों आतुर है हमारे दौर में यह निभ जाता था अब मुंह की खानी पड़ेगी .सटीक टिप्पणी की है आपने .हालाते बदहाली पर

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