बुधवार, 9 नवंबर 2011

bhasker 9th nov 2011

..सोच

वनिता बहू ढूंढ रही है। ‘कैसी लड़की चाहिए?’ मैंने यूं ही टाइमपास के लिए पूछ लिया और वह शुरू हो गई, ‘सोचती हूं, ऐसी लड़की मिल जाए तो ठीक रहेगी, जो अपने माता-पिता की पहली संतान हो। ऐसे बच्चे ज़्यादा तंदुरुस्त होते हैं।’ मैं सुनकर दंग रह गई कि लोग कहां तक सोच लेते हैं। फिर उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, ‘इनके पापा कह रहे थे, ‘लड़की के यहां भाई न हो तो और सही रहता है। कुछ मांगने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, सब अपने आप ही मिल जाता है। कई लोगों के पास तो कई एकड़ जमीन भी होती है।’ मैं तो इनके पापा को कह रही थी, ‘रिश्ता गुडग़ांव या नोएडा का ही देखना, वहां की ज़मीनें बड़ी महंगी हैं।’ मुझसे रहा न गया। ‘वनिता, कुछ तो शर्म कर। पिछले साल ही तूने अपनी बेटी का ब्याह किया है। ‘दामाद विदेश में नौकरी कर रहा है। तो कार देने का क्या फायदा? मेरी बेटी को कौन सा इंडिया में रहना है।’ तू यही कहती थी न। फर्नीचर देने का भी क्या फायदा कहकर अलमारी तक नहीं दी तूने बेटी को और अब तुझे ज़मीन चाहिए?’ वनिता मेरा मुंह ताक रही थी, फिर आहिस्ता से मैंने पूछा, ‘मैंने कुछ गलत कहा क्या बहना?’ वह चुप थी।

1 टिप्पणी: