शनिवार, 17 नवंबर 2018

एक मुलाकात

*मुलाकात*
वह मेरे से आगे खड़ा था । सभी मंदिर की सीढ़ियों में  लाइन में लग हाथ जोड़े खड़े थे । भक्तों के बीच एक छोटे बच्चे को खड़ा देख मेरे मन मे सवाल उठा  । लड़का होगा कोई दस बारह साल का । बहुत गरीब लग रहा था । बेतरतीब बाल ।  सभी भक्त मन ही मन  अपने लिए प्रभु से कुछ मांग रहे थे । दर्शन कर  दूसरी तरफ से मैं सीढ़ियां उतर रहा था, उतरते वक्त मेरी उससे आंखें मिल गई । बेटा तूने भगवान से क्या मांगा ?  मेरी तरफ देख उसने नजर झुका ली। मैंने कंधे पर हाथ रखा तो मासूमियत से बोला । बाबू जी पिछले महीने मेरा बाप मर गया । मेरी मां सारा दिन रोती रहती है । मैंने उसके लिए सब्र मांगा है ।मुझे बहुत भूख लगती है, अपने लिए खाना मांगा  । मेरी छोटी बहन के पास कपड़े नहीं हैं ,उसके लिए कपड़े मांगे , वह एक ही सांस में सब कह गया ।  बच्चे की बात सुनकर मैं भीतर तक भीग गया था । कुछ खाएगा ? उसने हामी भरी दी । वह मेरे साथ साथ  चल पड़ा । स्कूल जाता है ? नहीं । पढ़ना चाहता है ?  हां । उसने झट से जवाब दिया । तुझे स्कूल में दाखिल करा दें तो जाएगा ? करे पर आई खुशी पल पर में चली गई । पर माँ  स्कूल जाने से मना करती है ? क्यों ? मां कहती है कुछ नहीं रखा पढ़ने में । मां कभी भी झूठ नहीं बोलती  । कहती है, पढ़ लिख कर इंसान कमीना बन जाता है । सिर्फ अपने बारे में सोचता है । दूसरों के बारे में नहीं । बच्चे की छोटी सी यह बात मेरे दिल पर बहुत गहरा असर कर गई । दिन भर दिमाग मे चलता रहा , क्यूँ होता है ऐसा , पढ़लिख कर तो इंसान में बड्डपन आना चाहिए ।
शाम को सोते वक्त भी मैं यही सोच रहा था । जाने कब आप लग गई । मैं फ़िर एक बहुत लंबी लाइन में लगा हुआ था। सपना से लग रहा था ।  बेहद चुप्पी का माहौल था । लाइन आगे नही बढ़ रही थी । मैं बेसब्री से इंतजार करने लगा । किस चीज की लाइन है ?मैंने आगे झुक कर देखा। लाइन बहुत ज्यादा लम्बी है ।सबके चेहरे लटके हुए हैं ।कोई कुछ नहीं बोल रहा ।मेरे से अगले आदमी से मैंने पूछा, भैया क्या बात है ? उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया । लगा उसे कोई फर्क ही नही पीडीए ।  शायद वह मेरी भाषा समझ नहीं पाया । खुद भी परेसान लग रहा था ।तभी  मैंने नीचे की तरफ देखा । मैं तो दंग रह गया । हमारे पैरों के नीचे जमीन ही नहीं थी ।है भगवान बाप रे इसका  मतलब मैं मर गया हूं । दूसरे देशों के भी तो लोग मरते हैं । इसीलिए कोई बोल नहीं रहा । विदेशी भी भगवान के पास तो मर कर यहीं आते होंगे ।  तभी लाइन सरकने सी लगी । दूर से मैंने देखा, एक सफेद दाढ़ी की कोई  आकृति स्टेज पर बैठी है । साथ बैठा काला कलूटा आदमी एक। नाम पुकारने पर सबकी  किताब  निकाल कर दे रहा हैं । ये दोनों यमराज और भगवान होंगे शायद, मैंने अंदाज लगाया । यमराज कॉपी निकालता है , फ़िर किये गए कर्मों का लेख जोखा पढ़ता है । उन्हें कर्म के अनुसार सफेद दाढ़ी वाले भगवान आत्माओं को शायद नरक स्वर्ग भेज रहे हैं । मैं पहली बार इतना डरा हुआ था ।जिंदा रहते हुए तो बड़ा दबंग था । पूरा जीवन काल सामने घूम रहा था । कुकर्म तो कभी कोई नहीं किया मैंने । जो किया, किसी का भला ही किया  । फिर मुझे डर क्यों लग रहा है । अजीब अजीब से ख्याल मन में आए । कभी जवानी  ,कभी बचपन , मैं  यादों के अतीत में चक्कर काट रहा था । कब मेरा नम्बर आ गया पता ही नही चला । मेरा नाम पुकारा गया । काले कलूटे यमराज ने मेरे कर्मों के हिसाब किताब की कापी  भगवान के हाथ में थमा दी। मैं थरथर कांप रहा था ।  हे भगवान, मेरी कॉपी में क्या लिखा होगा ? कोई अच्छा काम किया ? बुरे कर्म । बाप रे । सब कुछ पता लगेगा यहां तो । मेरा तो बुरा हाल हो गया । तभी यमराज ने कॉपी उठाई, कॉपी खोल कर उसने  उलट पलट की । पढ़ कर सुनाने को हुआ , ये क्या ?  इसमें तो कोई भी नेक कर्म  क नहीं । यमराज ने कॉपी दूर फेंक कर मारी । कैसा इंसान है ये ? कोई नेक कर्म ही नही किया भगवन।
अपनी स्वार्थ सिद्धि में  खुद सारा जीवन बिता आया है। दाढ़ी वाले सुन रहे थे । मौन साधे हुए थे । किसी के लिए कुछ नहीं किया इस आदमी ने। अपने बेटे तक के साथ स्वार्थ  साधा। ये किसी का नही हो पाया । बेटे को ढंग से पढ़ाया तक नहीं ताकि  मजबूरन इसके पास रहे और इसका बुढापा चैन से कटे । बीवी का सिर्फ शरीर नोंचा । अपने परिवार का तो कभी हुआ ही नहीं । यमराज की आवाज में कर्कशता थी, प्रभु ने मौन तोड़ा ,इसे फ़िर से जमीन पर भेजो, वहां  कुछ करके आएगा तो ही फैसला करेंगे  ! तभी धर्मपत्नी ने मेरी चादर खींची । क्यूँ नींद में बड़बड़ा रहे हो । उठते क्यों नहीं ? आठ बजे गए हैं । सपना टूट गया , आंख खुली । उठ बैठा । मैं चाय का कप पकड़े सोचता ही रह गया , भगवन यह सब क्या था ? ऐसे होगी भगवन से मुलाकात , ये तो कभी सोचा न था ।

डॉ वेदप्रकाश श्योराण
प्रिंसिपल ( से .नि .)

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